आओ ! दीप जलाओ।
नवयुग का दिनमान उग रहा हैं, अब आरती सजाओ।
दाल न गल पायेगी तम की।
चाल न चल पायेगी भ्रम की।
ज्ञान-प्रकाश उतरता भू पर, जन-जन तक पहुँचाओ।
अब अज्ञान सिमट जाएगा।
अब भटकाव न भटकायेगा।
प्रज्ञा का विस्तार हो रहा, प्रतिभाओ ! जग जाओ।
दीप जलाओ प्रतिभाओं के।
पुष्प चढाओ क्षमताओ के।
स्वर्ग धरा पर उतर रहा हैं, अगवानी को जाओ।
नवल सृजन की यह वेला।
प्रतिभा के दीपो का मेला।
तमसोऽमा ज्योतिर्गमय हित, ' ज्योति पुंज ' बन जाओ।
गाँव-गाँव में, नगर-नगर में।
दीप प्रज्वलित हों घर-घर में।
प्रतिभाओ के राष्ट्र ! जागकर ' जगत गुरु ' कहलाओ।
-- मंगलविजय ' विजयवर्गीय ' अखंड ज्योति-दिसम्बर २००४
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