अपने पीयूष अनुदानो का, जनता को पान करायेगी ।
आया वह पवित्र ब्रम्हमुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
ऊषाकाल का उदभव हो रहा, अरुणोदय की पावन बेला हैं,
यज्ञ की बेदी सजी कहीं, कहीं नर-समूहो का मेला हैं,
ऐसे सुन्दर उपवन में, युग परिवर्तन का बिगुल बजायेगी ।
आया वह पवित्र ब्रम्हमुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
करी जीव सृष्टि की संरचना, चेतना का संचार किया,
प्रसव वेदना को सह, माता बनकर प्यार दिया,
श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा, बन, इस अनुकम्पा का एहसास दिलायेगी
आया वह पवित्र ब्रम्हमुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
देवयुग्मो में प्रथम नारी, तत्पश्चात नर का आए नाम,
उमा-महेश, ‘शची-पुरन्दर, चाहे हो वह सीता-राम,
मानुषी रुप में देवी हैं, इस तथ्य को ज्ञात करायेगी ।
आया वह पवित्र ब्रम्हमुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
नारी हृदय हैं निर्मल-कोमल, प्रेम भंडार छुपा हैं सारा,
मानवता का सिंचन करने, निकले इससे अमृत-धारा,
मुर्छित वसुन्धरा पर पुन: जाग्रती आएगी ।
आया वह पवित्र ब्रम्हमुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
-साधना मित्तल
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1997
3 comments:
बहुत सुन्दर कविता नारी पर, साधुवाद इस सुन्दर रचना के अवलोकन का मौका देने के लिए।
naari ko samman dene ke liye shukiriya .
mere pryas ki sarahna karne ke liye dhnyawad .
नारी हृदय हैं निर्मल-कोमल, प्रेम भंडार छुपा हैं सारा, मानवता का सिंचन करने, निकले इससे अमृत-धारा,मुर्छित वसुन्धरा पर पुन: जाग्रती आएगी । आया वह पवित्र ब्रम्हमुहूर्त, जब नारी सतयुग लायेगी ।।
नारी का सम्मान करने वालों का भी भूतनाथ सम्मान करते हैं !
इस रचना के लिए धन्यवाद आपको !
भाई अभी हम पुरी तरह हाई-टेक भूत नही हैं !
आपके इतने सारे ब्लॉग है तो हम कौन से को हमारी
ब्लॉग लिस्ट में लगाएं ! कृपया बताए और अब आपने
आपकी दुकान का रास्ता दिखा ही दिया है तो आनाजाना
तो लगा ही रहेगा ! :)
Post a Comment