Sunday, August 10, 2008

वनवासी राम

मात-पिता की आज्ञा का तो केवल एक बहाना था।
मातृभूमि की रक्षा करने प्रभु को वन में जाना था॥

पिता आपके राजा दशरथ मॉं कौशल्या रानी थी
कैकई और मंथरा की भी अपनी अलग कहानी थी
भरत शत्रुध्न रहे बिलखते लखन ने दी कुरबानी थी
नई कथा लिखने की प्रभु ने अपने मन में ठानी थी
सिंहासन है गौण प्रभु ने हमको पाठ पढाना था

अवधपुरी थी सुनी सुनी टूटी जन जन की आशा
वन में हम भी साथ चलेगें ये थी सब की अभिलाषा
अवधपुरी के सब लोगो ने प्रभु से नाता जोड लिया
चुपके से प्रभु वन को निकले मोह प्रजा का छोड दिया
अपने अवतारी जीवन का उनको धर्म निभाना था

सिंहासन पर चरण पादुका नव इतिहास रचाया था
सन्यासी का वेश भरत ने महलों बीच बनाया था
अग्रज और अनुज का रिश्ता कितना पावन होता है
राम प्रेम में भरत देखिये रात रात भर रोता है
भाई भाई सम्बन्धों का हमको मर्म बताना था

किसने गंगा तट पर जाकर केवट का सम्मान किया
औ” निषाद को किसने अपनी मैत्री का वरदान दिया
गिद्धराज को प्रेम प्यार से किसने गले लगया था
भिलनी के बेरों को किसने भक्तिभाव से खाया था
वनवासी और दलित जनों पर अपना प्यार लुटाना था

नारी मर्यादा क्या होती प्रभु ने हमें बताया था
गौतम पत्नी को समाज में सम्मानित करवाया था
सुर्पंखा ने स्त्री जाती को अपमानित करवाया जब
नाक कान लक्ष्मण ने काटे उसको सबक सिखाया तब
नारी महिमा को भारत में प्रभु ने पुनः बढ़ाना था

अगर प्यार करना है तुमको राम सिया सा प्यार करो
वनवासी हो गई पिया संग सीता सा व्यवहार करो
जंगल जंगल राम पूछते सीता को किसने देखा
अश्रुधार नयनों से झरती विधि का ये कैसा लेखा
राम सिया का जीवन समझो प्यार भरा नजराना था

स्वर्णिम मृग ने पंचवटी में सीता जी को ललचाया
भ्रमित हुई सीता की बुद्धि लक्ष्मण को भी धमकाया
मर्यादा की रेखा का जब सीता ने अपमान किया
हरण किया रावण ने सिय का लंका को प्रस्थान किया
माया के भ्रम कभी ना पडना हमको ध्यान कराना था

बलशाली वानर जाति तो पर्वत पर ही रह जाती
बाली के अत्याचारों को शायद चुप ही सह जाती
प्रभु ने मित्र बनाये वानर जंगल पर्वत जोड दिये
जाति और भाषा के बन्धन पल भर में ही तोड दिये
जन-जन भारत का जुड जाये प्रभु ने मन मे ठाना था

मैत्री की महिमा का प्रभु ने हमको पाठ पढाया था
सुग्रीव-राम की मैत्री ने बाली को सबक सिखाया था
शरणागत विभीषण को भी प्रभु ने मित्र बनाया था
लंका का सिंहासन देकर मैत्री धर्म निभाया था
मित्र धर्म की पावनता का हमको ज्ञान कराना था

भक्त बिना भगवान की महिमा रहती सदा अधूरी है
हनुमान बिना ये कथा राम की हो सकती क्या पूरी है
सिया खोज कर लंक जलाई जिसने सागर पार किया
राम भक्ति में जिसने अपना सारा जीवन वार दिया
भक्ति मे शक्ति है कितनी दुनिया को दिखलाना था

अलग-अलग था उत्तर-दक्षिण बीच खडी थी दीवारें
जाति वर्ग के नाम पे हरदम चलती रहती तलवारें
अवधपुरी से जाकर प्रभु ने दक्षिण सेतुबन्ध किया
उत्तर-दक्षिण से जुड जाये प्रभु ने ये प्रबन्ध किया
सारा भारत एक रहेगा जग को ये बतलाना था

राक्षस राज हुआ धरती पर ऋषि-मुनि सब घबराते थे
दानव उनके शीश काटकर मन ही मन हर्षाते थे
हवन यज्ञ ना पूर्ण होते गुरूकुल बन्द हुये सारे
धनुष उठाकर श्री राम ने चुन चुन कर राक्षस मारे
देव शक्तियों को भारत में फिर सम्मान दिलाना था

गिलहरी, वानर, भालू और गीध भील को अपनाया
शक्ति बडी है संगठना में मंत्र सभी को समझाया
अगर सभी हम एक रहे तो देश बने गौरवशाली
दानव भय से थर्रायेगें रोज रहेगी दीवाली
संघ शक्ति के दिव्य मंत्र को जन-जन तक पहुंचाना था

मर्यादा पुरुषोतम प्रभु ने सागर को समझाया था
धर्म काज है सेतुबन्ध ये उसको ये बतलाया था
अहंकार में ऐंठा सागर सम्मुख भी ना आया था
क्रोध से प्रभु ने धनुष उठाया सागर फिर घबराया था
भय बिन होये प्रीत ना जगत में ये संदेश गुंजाना था

रावण के अत्याचारों से सारा जगत थर्राता था
ऋषि मुनियों का रक्त बहाकर पापी खुशी मनाता था
शिव शंकर के वरदानों का रावण ने उपहास किया
शीश काटकर प्रभु ने अरि का सबको नव विश्वास दिया
रावण के अत्याचारों से जग को मुक्त कराना था

लंका का सुख वैभव जिनको तनिक नही मन से भाया
अपनी प्यारी अवधपुरी का प्यार जिन्हें खींचे लाया
मातृभूमि और प्रजा जनों की जो आवाज समझते थे
प्रजा हेतु निज पत्नी के भी नही त्याग से डरते थे
मातृभूमि को स्वर्ग धाम से जिसने बढकर माना था

बाल्मिकी रत्नाकर होते रामायण ना कह पाते
तुलसी पत्नी भक्ति में ही जीवन यापन कर जाते
रामानन्द ना सागर होते राम कथा ना दिखलाते
कलियुग में त्रेता झांकी के दर्शन कभी ना हो पाते
कवियों की वाणी को प्रभु ने धरती पर गुंजाना था

जन-जन मन में ”चेतन” है जो राम कथा है कल्याणी
साधु सन्त सदियों से गाते राम कथा पावन वाणी
पुरखों ने उस राम राज्य का हमको पाठ पढाया था
राम राज्य के आदर्शों को हम सबने अपनाया था
भरत भूमि के राजाओं को उनका धर्म बताना था

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